Tuesday, February 10, 2009

भीगे होठ तेरे, प्यासा दिल मेरा........


क्या देख रही हो कुछ और नहीं आता क्या टी.वी. पर चाचू बोले और रिमोट लेकर चैनल बदल दिया। लेकिन मैं समझ नहीं पाई कि आखिर डाँटा क्यों मैं तो गाना देख रही थी। ग्रुप में बताया तो एक ने कहा डाँटेगे नहीं तो क्या करेगें दृश्य देखे हैं। उस गाने के तभी दूसरी ने कहा अरे जब उसको दिखाने में शर्म नहीं तो हमको देखने में कैसी शर्म ऐसी बातें सुन कर मैं हैरान थी और सोच रही थी क्या दे रहा है यह हिन्दी सिनेमा हमें................

आज से कुछ सालों पहले की बात करें तो ऐसी फिल्में बनती थी कि पूरा परिवार एक साथ फिल्म देखें और कुछ सीखें लेकिन आज ऐसी फिल्मे बनती है। जिसे भाई-बहन भी साथ मे नही देख सकते। मैने अक्सर देखा है कि अब ज्यादातर फिल्मों मे अश्लील दृश्य होते है तो गाना उस फिल्म से पहले ही मार्केट में आ जाता है और वह फिल्म लोकप्रियता हासिल करने मे कामयाब हो जाती है।

लेकिन जब भी ऐसी फिल्मों के डायक्टरों या प्रोडूसर से इस विषय पर बात की जाती है तो उनका कहना होता है कि हम वही दिखाते जो लोग देखना चाहते हैं। हम लोगों को भी तो विषय व कहानी आम लोगो की जिन्दगी से ही मिलती है। वही दूसरी ओर फिल्म की हीरोईन से बात करो तो उनका वही रटा हुआ डायलांग बोल देती है कि ऐसे दृश्य इस फिल्म की मांग थी और कहती है कि सिर्फ दृश्यो पर ना जाये फिल्म की कहानी को देखे।

क्या कभी भी सेन्सर बोर्ड वाले ऐसी फिल्मों को हरी झंडी देने से पहले एक बार भी यह सोचते हैं कि इसका समाज पर क्या असर पडेगा नही सोचते क्योकि पैसा सब कुछ खरीद सकता है। सरकार को सेन्सर बोर्ड वालो को कडे़ निर्देश देने चाहिए कि ऐसी फिल्में बने ही नही अगर बनती भी है तो टी.वी चैनलो पर फिल्म आने का समय निर्धारित होना चाहिए।

अत: मैं यही कहूंगी कि क्या वह समय कभी लौट कर आयेगा? जब फिर से पूरा परिवार एकसाथ मिलकर कोई फिल्म देख सकेगा...............



















































































































































































































































































































































































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